आख़िरकार इम्तेहान ख़त्म हो ही गए| बाक़ी रह गया तो फ़िर वही सन्नाटा जो दो साल पहले था| मगर इस बात की ख़ुशी है या ग़म कहना मुश्क़िल है| इम्तेहान शुरू होने से कुछ ही दिन पहले की बात है| कॉलेज फेरवेल के दो दिन हुए थे| काफ़ी ख़ुशी थी| अच्छे अच्छे पल तस्वीरों मे क़ैद हुए थे| साड़ी पहनी थी ज़िंदगी मे दूसरी बार| अलग ही बात थी| पाँव मे बेड़िओं सा मालूम हुआ था मगर दिल ही दिल मे अच्छा लगा था| |
मेरे सबसे अच्छे मामू की तबीयत कई दिनों से ख़राब चल रही थी| वो दिल्ली आए थे कुछ दिन हुए मगर असाइनमेंट्स में हम इस तरह घिरे थे की मौक़ा हो नहीं पाया मुलाक़ात का| इस बात का ग़म ज़िंदगी भर रहेगा| सुबह फ़ज़िर पढ़ कर नींद में मुब्तला हुए ही थे की अप्पी का फ़ोन आया और मामू के इंतेक़ाल की खबर मिली| अंदर से जैसे कुछ हिल सा गया हो| सन सन सा होने लगा| हम लेट गए| आँसू भी नहीं निकलते थे| यक़ीन नहीं होता था| उनकी बातें कानों में सुनाई देती थीं| हम सब कज़िन्स को आवाज़ देते हुए की उठ जाओ नाश्ता कर लो| छोटे थे तो थोड़ा ख़ौफ़ भी रहता था उनका| रात में खाना खाते वक़्त मामू आज तक पर न्यूज़ सुनते थे| हम सब बेचैन रहते थे की मामू जल्दी से खाना खा लें तो फ़िर स्टार प्लस पर हमारे पसंदीदा सीरियल्स या कोई फिल्म देखी जाए| मामू रेडियो पर भी न्यूज़ सुनते थे| हम बच्चों से सर में तेल मालिश करवाते थे| हम सब लोग खाना खाके टेहलते थे| कभी ना ख़त्म होने वाली बातों के साथ| गर्मी की छुट्टियाँ बहुत मज़ेदार हुआ करती थीं| वक़्त ने मानो कितना आगे लाके खड़ा कर दिया हो ज़िंदगी को| पीछे सब धुन्द्ला सा हो गया है| मामू को खाने खिलाने का बहुत शौक़ था| मुआनी खाना भी बहुत लज़ीज़ बनाती थीं| हम लोग कभी मामू के पास नहीं बैठते थे| प्यार मे कुछ ज़्यादा ही बोटियाँ मिल जाती थीं| यक़ीनन मोहब्बत और खाने का कुछ तो रिश्ता ज़रूर है| मामू की आदत थी रोकने की| इसलिए अक्सर एक दो दिन बढ़ ही जाते थे जाने की तारीख़ से| बहुत मोहब्बत करते थे मामू हम सब से| पुरानी बातें सोचकर जितनी मुस्कुराहट नहीं आती उससे ज़्यादा आँसू आँखों मे चमकने लगते हैं|
एक पल में कितना कुछ बदल जाता है| कितनी नज़दीक़ियाँ दूरियों मे तब्दील हो जाती हैं| हम जान भी नहीं पाते किससे कब आख़िरी मुलाक़ात हो रही हो| आख़िर में सिर्फ़ बातें और यादें रह जाती हैं और एक ऐसी खाली जगह जो शायद वक़्त कभी नहीं भर पाता| जैसा भी हो आगे ऐसा फिर नहीं होगा| आज ही होता है हमारे पास मुट्ठी में दबाने को, दिल से लगाने को, होंटो पे सजाने को, सिर्फ़ और सिर्फ़ आज| जितनी जल्दी हम ये बात समझने के साथ साथ अपनाने लगें, उतनी जल्दी हम शायद बेहतर इंसान बन सकेंगे|
जुदाई आख़िरी सबक है ज़िंदगी का मगर, प्यार से रह कर यादें बनाना आदाब ए ज़िंदगी है|
मेरे सबसे अच्छे मामू की तबीयत कई दिनों से ख़राब चल रही थी| वो दिल्ली आए थे कुछ दिन हुए मगर असाइनमेंट्स में हम इस तरह घिरे थे की मौक़ा हो नहीं पाया मुलाक़ात का| इस बात का ग़म ज़िंदगी भर रहेगा| सुबह फ़ज़िर पढ़ कर नींद में मुब्तला हुए ही थे की अप्पी का फ़ोन आया और मामू के इंतेक़ाल की खबर मिली| अंदर से जैसे कुछ हिल सा गया हो| सन सन सा होने लगा| हम लेट गए| आँसू भी नहीं निकलते थे| यक़ीन नहीं होता था| उनकी बातें कानों में सुनाई देती थीं| हम सब कज़िन्स को आवाज़ देते हुए की उठ जाओ नाश्ता कर लो| छोटे थे तो थोड़ा ख़ौफ़ भी रहता था उनका| रात में खाना खाते वक़्त मामू आज तक पर न्यूज़ सुनते थे| हम सब बेचैन रहते थे की मामू जल्दी से खाना खा लें तो फ़िर स्टार प्लस पर हमारे पसंदीदा सीरियल्स या कोई फिल्म देखी जाए| मामू रेडियो पर भी न्यूज़ सुनते थे| हम बच्चों से सर में तेल मालिश करवाते थे| हम सब लोग खाना खाके टेहलते थे| कभी ना ख़त्म होने वाली बातों के साथ| गर्मी की छुट्टियाँ बहुत मज़ेदार हुआ करती थीं| वक़्त ने मानो कितना आगे लाके खड़ा कर दिया हो ज़िंदगी को| पीछे सब धुन्द्ला सा हो गया है| मामू को खाने खिलाने का बहुत शौक़ था| मुआनी खाना भी बहुत लज़ीज़ बनाती थीं| हम लोग कभी मामू के पास नहीं बैठते थे| प्यार मे कुछ ज़्यादा ही बोटियाँ मिल जाती थीं| यक़ीनन मोहब्बत और खाने का कुछ तो रिश्ता ज़रूर है| मामू की आदत थी रोकने की| इसलिए अक्सर एक दो दिन बढ़ ही जाते थे जाने की तारीख़ से| बहुत मोहब्बत करते थे मामू हम सब से| पुरानी बातें सोचकर जितनी मुस्कुराहट नहीं आती उससे ज़्यादा आँसू आँखों मे चमकने लगते हैं|
एक पल में कितना कुछ बदल जाता है| कितनी नज़दीक़ियाँ दूरियों मे तब्दील हो जाती हैं| हम जान भी नहीं पाते किससे कब आख़िरी मुलाक़ात हो रही हो| आख़िर में सिर्फ़ बातें और यादें रह जाती हैं और एक ऐसी खाली जगह जो शायद वक़्त कभी नहीं भर पाता| जैसा भी हो आगे ऐसा फिर नहीं होगा| आज ही होता है हमारे पास मुट्ठी में दबाने को, दिल से लगाने को, होंटो पे सजाने को, सिर्फ़ और सिर्फ़ आज| जितनी जल्दी हम ये बात समझने के साथ साथ अपनाने लगें, उतनी जल्दी हम शायद बेहतर इंसान बन सकेंगे|
जुदाई आख़िरी सबक है ज़िंदगी का मगर, प्यार से रह कर यादें बनाना आदाब ए ज़िंदगी है|